जब मौर्य साम्राज्य का पतन हुआ तो पुष्यमित्र शुंग मगध का राजा बना,उसका साम्राज्य लगभग पूरे भारत में फैला हुआ था। अयोध्या का साम्राज्य उसके साम्राज्य में आता था। पुष्यमित्र शुंग के दामाद का बेटा राजा धनदेव उस समय अयोध्या का राजा थे।
अयोध्या के राजा धनदेव ने अयोध्या शिलालेख बनवाया और अयोध्या शिलालेख के अनुसार:-
1. कोसल-अधिपेना द्विर-अश्वमेध-यजिनः सेनापतेः पुष्यमित्रस्य षष्ठेना कौसिकी-पुत्रेना धन
2. धर्मराजन पितुः फाल्गुदेवस्य केतनं करिताम्।
पुष्यमित्र शुंग के पुरोहित महर्षि पतंजलि थे और महर्षि पतंजलि के गुरु महर्षि पाणिनि थे। महर्षि पाणिनी ने पुष्यमित्र शुंग को भरद्वाज गोत्र का ब्राह्मण बताया था। महर्षि पाणिनि पुष्यमित्र शुंग के समकालीन थे। बाद में उसके पुत्र अग्निमित्र ने अपनी राजधानी पाटलिपुत्र से उज्जैन शिफ्ट की। अयोध्या पर शुरू से ही कान्यकुब्ज ब्राह्मणों का शासन था।
पुष्यमित्र शुंग शुंगीपुत्र आचार्यों के वंश से थे। शुंगीपुत्र आचार्य अश्वत्थामा (भरद्वाज) के वंश से थे। मेरे ख्याल से कान्यकुब्ज ब्राह्मणों के कबिले में जितने भी भरद्वाज गोत्र के ब्राह्मण हैं वे शुंगीपुत्र आचार्यों के वंश के हैं। कान्यकुब्ज ब्राह्मणों के कबिले में भरद्वाज गोत्र के ब्राह्मणों की संख्या काफी ज्यादा है। उपाध्याय आचार्य का पर्यायवाची शब्द है। आचार्य का अर्थ है शिक्षक और उपाध्याय का अर्थ है शिक्षक।
पुष्यमित्र शुंग ने अपने दामाद के पुत्र धनदेव को कोशल प्रदेश (अयोध्या क्षेत्र) का राजा नियुक्त किया था।